Hazrat Imam Husain ki Shahadat : हजरत इमाम हुसैन की शहादत को किया याद

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Hazrat Imam Husain ki Shahadat मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक खास दिन है. इस मौके पर ताजिए यानी मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है. इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताजिया निकालते हैं. वहीं, मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा होता है, जो इस साल 17 जुलाई को होगा. इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, कर्बला में युद्ध के दौरान इस दिन हजरत मुहम्मद के नवासे हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए थे. जिसके कारण मुसलमान इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाकर उन्हें याद करते हैं.

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चौक बाज़ार में अकीदत के साथ निकल गया जुलूस

By: uphelp24.com

नगर पंचायत चौक बाजार में भी दसवीं मोहर्रम ( Hazrat Imam Husain ki Shahada t ) के जुलूस को पूरे शान,शौकत से निकल गया इस मौके पर Humanity Charitable Trust की तरफ से जुलूस में शामिल लोगों के लिए  शरबत और पानी काइंतजाम किया गया था. इस मौके पर Humanity Charitable Trust के लोग और गांव के तमाम युवा साथियों के साथ लोगों में पूरे एहतेराम के साथ लोगों को शरबत और पानी पिलाया गया.

 

Mukhtar Abbas Naqvi ने क्या कहा 

 यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुहर्रम त्योहार को लेकर कहा कि तीज त्योहार कानून के दायरे में रहकर मनाएं. अब इस बयान पर बहस छिड़ गई है. अब बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का बयान सामने आया है. मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कोई भी धार्मिक कार्यक्रम हो सामाजिक कार्यक्रम हो श्रद्धा के साथ-साथ शालीनता और शालीनता के साथ-साथ शासनादेश के सम्मान के साथ होना चाहिए.

क्यों मनाया जाता है मुहर्रम ?

मुहर्रम से ही इस्लामिक नए साल कि शुरुआत होती है. चांद दिखने पर 10 दिवसीय मोहर्रम (मुहर्रम) की शुरुआत होती है. शिया समुदाय के मुस्लिम मुहर्रम को गम के रूप में मनाते हैं. इस दिन इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत को याद किया जाता है. मुहर्रम पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों के शहादत की याद में मनाया जाता है.

Hazrat Imam Husain ki Shahadat

karbala chowk bazar. www.uphelp24.com
 

61 वीं हिज़री तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. इस जंग में इंसानियत  के लिए और जुर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई. इस जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मदके नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया था. मुआविया नाम के शासक के निधन के बाद उनका राजपाट उनके बेटे यजीद को मिला. यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बनकर बैठ गया था. वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था, लेकिन उसके सामने पैगंबर मुहम्मद के खानदान का इकलौता चिराग इमाम हसन और  हुसैन बड़ी चुनौती  थे . कर्बला में सन् 61 हिजरी से यजीद ने अत्याचार बढ़ा दिया तो बादशाह इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जाने लगे, लेकिन रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक लिया.

 

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