राष्ट्रभक्त एवं हॉकी के जादूगर थे मेजर ध्यानचंद – डॉ सरोज रंजन

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दिग्विजयनाथ इंटर कॉलेज चौक बाजार महाराजगंज
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त सन्‌ 1905 ई. को प्रयागराज मे हुआ था। वो एक राजपूत परिवार में जन्मे थे। बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती  हो गए।

ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी भी उनकी हॉकी की कलाकारी देखकर हॉकी के मुरीद होकर वाह-वाह कह उठते थे बल्कि अपनी सुधबुध खोकर उनकी कलाकारी को देखने में मशगूल हो जाते थे। उनकी कलाकारी से मोहित होकर ही जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने एवं देश की नागरिकता के साथ सेना में सर्वोच्च पद देने की पेशकश कर दी थी।

मेजर ध्यानचंद के हृदय में देशभक्ति की भावना कूट कूट भरी थी उन्होंने हिटलर के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था और हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा।मेजर ध्यानचंद ने कहा था कि “मेरे देश की जिम्मेदारी नहीं है आगे बढ़ाने की। मेरी जिम्मेदारी है देश को आगे बढ़ाने की“।।

उक्त बातें गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सभागार मे प्रार्थना सभा में मेजर ध्यानचंद जी के जयंती के अवसर पर भूगोल प्रवक्ता डॉ सरोज रंजन ने कहीं।इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य, प्राध्यापकगण कर्मचारीगण एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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